जन्नत से कम नहीं पराशर घाटी | पराशर झील | मण्डी, हिमाचल प्रदेश

ज्यादातर लोग गर्मियों के मौसम में पहाड़ों का रुख करते हैं लेकिन पहाड़ों पर ऐसी भी कई जगहें हैं जहाँ सिर्फ गर्मियों में ही नहीं बल्कि हर मौसम में घूमने फिरने के लिए जा सकते हैं... ऐसी ही एक खूबसूरत जगह है हिमाचल प्रदेश की पराशर घाटी, यह जिला मण्डी में है। गर्मियों में तो हज़ारों लोग यहाँ आते ही हैं, सर्दियों में भी यहां आने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं होती, सर्दियों में ट्रैकिंग और ताज़ा बर्फ में अठखेलियां करने के लिए देशी विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं।  


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prashar lake
 
            Prashar Lake          


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पराशर घाटी मण्डी जिला मुख्यालय से लगभग 48 किलोमीटर है। अपनी गाड़ी से या टैक्सी लेकर यहाँ आराम से आया जा सकता है, युवा वर्ग बाइक से भी यहाँ आते हैं। रहने के लिए यहाँ कुछ सरकारी टेस्ट हाउस हैं जहाँ पर पहले से ही बुकिंग करवानी पड़ती है इसके अलावा प्राइवेट कैंप सर्विस भी यहाँ होती है। यहाँ आने वाले कई ट्रैकर्स कई कई दिनों तक यहाँ कैंपिंग करते हैं। यहाँ गर्मियों में मौसम बहुत सुहाना होता है इसलिए यहाँ आने के बाद वापिस जाने का मन नहीं करता। यहाँ की सुन्दर हसीं वादियां किसी का भी मन मोह सकती हैं। 


                                         
12 महीने जन्नत से कम नहीं पराशर घाटी- हिमाचल प्रदेश
 
                पराशर झील                  



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इस मनमोहक स्थान का नाम ऋषि पराशर के नाम पर पड़ा है। यहाँ उन्होंने काफी समय तक निवास किया था उन्होंने ही अपने तप की शक्ति से यहाँ 8,960 फ़ीट की ऊंचाई पर वीरान जंगल में एक जल स्त्रोत को उत्पन किया जो पराशर झील के नाम से पुरे विश्व में विख्यात है। झील के साथ में ही ऋषि पराशर का पेगोडा शैली में निर्मित प्राचीन मन्दिर है जो पूर्णतया लकड़ी से निर्मित है। यह मन्दिर मण्डी रियासत के राजा बानसेन 14 -15वीं शताब्दी में बनवाया गया था उस समय मंदिर में ऋषि पिंडी रूप में विराजमान थे, वर्तमान में ऋषि की आदमकद की एक सुन्दर मूर्ति स्थापित है। यह मन्दिर 3 मंजिला है जिसमे लकड़ी के अलावा पत्थर के स्लेटों का इस्तेमाल किया गया है।


                                                     
                                                       
12 महीने जन्नत से कम नहीं पराशर घाटी- हिमाचल प्रदेश

पराशर ऋषि मन्दिर 



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पराशर मन्दिर 8,960 फ़ीट की ऊंचाई पर है। यहाँ का सारा भूभाग वन क्षेत्र के अधीन है। चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं और पहाड़ो की तलहट्टी में पराशर झील स्थित है। यह एक बेहद पवित्र स्थल है। इस झील में एक टापू है जो साल भर झील के एक किनारे से दूसरे किनारे के तरफ तैरता रहता है। इस लिए इस झील को तैरते हुए टापू वाली झील भी कहा जाता है। श्रद्धालु ऋषि पराशर के दर्शन करने के बाद झील की परिक्रमा जरूर करते हैं। कुछ समय पहले तक झील के पानी से श्रद्धालु स्नान कर सकते थे लेकिन अब देवता की आज्ञा अनुसार यहाँ स्नान करना निषिद्ध कर दिया गया है। झील के किनारे पर नरम हरी घास है जहाँ लोग बैठ कर सुखद शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ हर वक्त ठण्डी हवाएं चलती रहती हैं जिससे लम्बी लम्बी हरी घास और झील के पानी की लहरें सुन्दर मनोरम दृश्य पेश करती हैं। 



                                                                            
झील में तैरता हुआ टापू

         झील में तैरता हुआ टापू         



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पराशर घाटी प्रकृति के सभी गुणों से लबालब भरी हुई है। इस खूबसूरत घाटी में कई तरह की दुर्लभ जड़ी बूटियां, जंगली जानवर व् पक्षी पाए जाते हैं। यहाँ के खेतों में तैयार सब्जी की मांग हिमाचल के पडोसी राज्यों में खूब है। इसका कारण है यहाँ का वातावरण और पर्यावरण। यहाँ हर साल बर्फ गिरती है जिससे यहाँ पानी जमीन में काफी नीचे तक रच जाता है जिससे जमीन नरम व् उपजाऊ बनी रहती हैं। इसलिए यहाँ पर ऐसी जंगली सब्जियां व् फल प्राकृतिक रूप से उगते हैं जो हर किसी इलाके में नहीं उग सकते। यहाँ काफल, लिंगड़, गुच्छी, जंगली मशरूम आदि कई फल और सब्जियां उगते हैं जिनकी भारी मांग बाजार में रहती है। पराशर की पहाड़ियां हरी भरी घास से से सदा ही भरी रहतीं हैं जहाँ गुज्जर जाति के लोगों की गाय भैंस चरती रहती हैं, इन ये लोग यहाँ मिटटी के कच्चे मकानों में रहते हैं जो देखने में काफी आकर्षक लगते हैं।   


                                                                         
           
12 महीने जन्नत से कम नहीं पराशर घाटी- हिमाचल प्रदेश

             लिंगड़                     



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ये जगह वाकई में बहुत सुन्दर है दोस्तों, अगर आप भी प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताना चाहते हैं तो यहाँ जरूर आएं। अगर आप हिमाचल घूमने आये हों और अगर आप कुल्लू मनाली जा रहे हों तो पराशर आसानी से आ सकते हैं। इसके लिए आपको मण्डी -कुल्लू वाया बजौरा होकर आना चाहिए। कटौला से 2 रास्ते हैं, एक बजौरा के लिए और एक पराशर के लिए। पहले पराशर घूम सकते हैं और उसके बाद वापिस आकर बजौरा होकर कुल्लू जाया जा सकता है। 


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